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भारतीय परिवारों पर कर्ज़ बढ़ा और बचत घटी

 27 Apr 2024

भारत में शुद्ध घरेलू बचत का आँकड़ा पिछले 47 सालों के सबसे निचले स्तर पर पहुँच चुका है। ये जानकारी रिज़र्व बैंक से मिले आँकड़ों  से निकली है। इसके मुताबिक पिछले दस सालों में कर्ज़ लेने वाले लोगों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है।  हालाँकि वित्त मंत्रालय कर्ज़ बढ़ने की बात का खंडन कर चुका है। मंत्रालय का कहना है कि कोरोना के बाद कम ब्याज़ दर के कारण लोग क़र्ज़ लेने के लिए आगे आये हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, कर्ज़ न चुका पाने के कारण 2018 से 2020 तक कुल 25,231 लोग अपनी जान ले चुके हैं।



क्या है शुद्ध घरेलू बचत और क्यों हो रही है कम

किसी परिवार के कुल धन और निवेश में से यदि उनका कर्ज़ और उधारी घटा दी जाये, तो उसके बाद परिवार के पास जो धन बचेगा उसे ही शुद्ध घरेलू बचत कहा जायेगा। रिज़र्व बैंक के हालिया आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में भारत में कुल बचत दर सकल घरेलु उत्पाद(जीडीपी) का 7.5 फ़ीसद था, जो 2023 में घटकर 5.3 फ़ीसद पर पहुंच चुका है। बचत की घटी हुई दर 1970 की बचत दर 5.8 से भी कम है। कई आर्थिक विद्वान् भारत की घटती बचत दर पर चिंता जता चुके हैं।

रिपोर्ट के अनुसार बचत की दर इसलिए कम हो रही है क्योंकि लोग घर का ख़र्च चलाने के लिए कर्ज लेने पर मजबूर हैं। वे जैसे-जैसे कर्ज़ ले रहे हैं, उनकी शुद्ध बचत घट रही है।  क्योंकि लोगों को अपनी बचत में से ही  कर्ज़ को चुकाना पड़ रहा है।



विशेषज्ञों की राय

कुछ आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में घरेलू कर्ज़ का एक बड़ा हिस्सा उस क्षेत्र में दिया जा रहा है जहाँ लाभ का हिस्सा बहुत कम है। उदाहरण के तौर पर भारत में घरेलू कर्ज़ का आधे से ज़्यादा हिस्सा कृषि और बिज़नेस से जुड़ा हुआ है। भारत में पिछले दस सालों में कर्ज़ लेने वालों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। भारत में कर्ज़ पर जो दर निर्धारित की जाती है वो दर बहुत ज़्यादा होती है और कर्ज़ को चुकाने का समय बहुत कम होता है। इसके अलावा लोगों का कर्ज़ उनकी आय की तुलना में बढ़ रहा है जिसके कारण बचत कम होती जा रही है।

पिछले साल सितंबर में वित्त मंत्रालय ने परिवारों का कर्ज़ा बढ़ने की बात को खारिज़ कर दिया था। मंत्रालय का कहना था कि कोरोना महामारी के बाद से लोग कम ब्याज़ दर के कारण बैंकों से कर्ज़ ले रहे हैं और इसका इस्तेमाल कार खऱीदने, घर बनाने और शिक्षा के लिए कर रहे हैं। सबसे ज़्यादा लोग कार और घर खऱीदने के लिए कर्ज़ ले रहे हैं। इसलिए यह अर्थव्यवस्था के लिए ग़लत संकेत तो बिलकुल भी नहीं है, बल्कि भविष्य में रोज़गार और बढ़ती आय के विकल्पों के बढ़ने का एक शुभ संकेत है।

भारत में प्रति व्यक्ति आय जी-20 देशों में से सबसे कम है। ऐसे में कई आर्थिक समझ रखने वाले लोगों का मानना है कि जिस तरह से लोग कर्ज़ पर निर्भर हुए जा रहे हैं, यह अर्थव्यवस्था के लिए कोई अच्छे संकेत नहीं है।

अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार साल 2018, 2019 और 2020 में कुल 25,231 लोगों ने  कर्ज के कारण आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि इनके पास अपना कर्ज़ चुकाने के लिए लिए पैसे नहीं थे।